बहादुर चौहान कौन हैं क्या हैं उनका मामला
बहादुर चौहान ग्राम मलगांव में मूलनिवासी हैं और मलगांव के ही आदिम जाती प्राथमिक शाला में पिछले 12 वर्षों से सफाई कर्मी के पद पर अंशकालीन रूप से पदस्थ थे। बहादुर चौहान 70 प्रतिशत दिव्यांगता (बहरेपन) के शिकार हैं। वह अनुसूचित जाती में आते हैं।

स्कुल में जॉब थी उसका क्या हुआ
बहादुर चौहान ग्राम मलगांव के आदिम जाती प्राथमिकता शाला में सफाई कर्मी के पद पर अंशकालीन रूप से पिछले 12 वर्षों से पदस्थ थे। ग्राम मलगांव को SECL प्रबंधन नें अधिग्रहित कर लिया। मगर इस अधिग्रहण प्रक्रिया में उनकी नौकरी प्रभावित हुई है। वह दिव्यांग हैं उनकी आजीविका का साधन छीन जाने से अब वह बेरोजगार हो गए हैं। दिव्यांगता की वज़ह से बाहर काम मिल पाना भी मुश्किल होता है। अधिग्रहण प्रक्रिया में उक्त स्कुल तो माइंस में समाहित हो गया मगर ग्राम मलगांव की आदिम जाती प्राथमिक शाला को अब ग्राम झाबर के स्कुल में सम्मिलित कर लिया गया है। ज़ब बहादुर चौहान जी झाबर के स्कुल में जाकर संपर्क किए तो पता चला की वहाँ उनके लिए किसी तरह की कोई जगह खाली नहीं वहाँ कोई पहले से ही इस काम को करने के लिए नियुक्त किया गया है। अब बहादुर चौहान करें तो क्या करें। इस तरह से SECL की भुमि अधिग्रहण प्रक्रिया नें बहादुर चौहान का रोजगार छीनकर उन्हें बेरोजगार कर दिया।
बहादुर चौहान ने जिलाधीश कोरबा से लगाई गुहार
बहादुर चौहान का कहना हैं की वह इससे पहले दो मर्तबा कोरबा जिला कलेक्टर महोदय से गुहार लगा चुके हैं। मगर इस संदर्भ में उन्हें कोई जवाब लिखित रूप से प्राप्त नहीं हुआ। जिस वज़ह से उनका जन जीवन प्रभावित हो रहा हैं। अब वह मूलनिवासी संघ के लोगों के समक्ष अपनी व्यथा रखे हैं और उनकी आवाज बुलंद करने के लिए कहें हैं।
नौकरी छीन जाने से बहादुर चौहान की अभी क्या परिस्थिति है।
मलगांव अधिग्रहण प्रक्रिया में दिव्यांग बहादुर चौहान की नौकरी छीन जाने से उनके सामने आजीविका को चलाने हेतु आर्थिक दिक्क़त आ रही है। उनकी एक बिटिया का पहले ही विवाह हो चूका पर उन पर अभी उनकी एक बिटिया व एक बेटा साथ ही अर्धांगनी आश्रित है। अब उन्हें परिवार का भरण पोषण करने में दिक्क़त आ रही है। साथ ही नौकरी छीन जाने से बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही हैं। आर्थिक रूप से कमजोरी होकर बहादुर चौहान मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं। कलेक्टर महोदय को इससे पहले दो मर्तबा वह पत्राचार कर चुके पर अब तक उनके हित में किसी तरह का कोई हितकारी निर्णय नहीं लिया गया।
अब बहादुर चौहान आगे क्या करेंगे
फिलहाल तो बहादुर चौहान का मुद्दा मूलनिवासी संघ के द्वारा संज्ञान में लेते हुवे इनसे जुडी हर बातें पत्राचार करके जिला कोरबा कलेक्टर महोदय को उनकी स्थिति परिस्थिति से अवगत करवाया गया है। और कलेक्टर महोदय को बहादुर चौहान जी को न्याय दिलाये जाने हेतु पत्र के माध्यम से कहा गया है। मूलनिवासी संघ के कोरबा जिला अध्यक्ष उदय चौधरी से हुई परिचर्चा में उन्होंने बतलाया की वह बहादुर चौहान की हर पीड़ा सुने समझें हैं। और हर बातों को शब्दों में ढालकर कोरबा जिलाधीश महोदय को पत्राचार करते हुवे अवगत करवाए हैं। साथ ही बहादुर चौहान के साथ जाकर व्यक्तिगत रूप से कोरबा जिला कलेक्टर महोदय से मुलाक़ात भी किए और उन्हें इनकी व्यथा बतलाये व मानवता के नाते कुछ सकारात्मक कदम उठाने को बोले हैं। अब आगे देखना यह हैं की कोरबा जिला कलेक्टर महोदय इस संदर्भ में क्या निर्णय लेते हैं। जिलाधीश महोदय से कहा गया हैं की अगर झाबर में ऑलरेडी कोई सफाई कर्मी पदस्थ हैं तो कटघोरा ब्लॉक में अन्य भी कई स्कुल हैं उनमे से किसी स्कुल में इन्हे सफाई कर्मी का रोजगार दिया जाये। 

अगर इनकी काम में ढीलाई की वज़ह से नौकरी प्रभावित हुई होती तो बात समझ में आता मगर यहाँ secl द्वारा किए जा रहे अधिग्रहण प्रक्रिया से इनका रोजगार प्रभावित हुवा है तो उसकी व्यवस्था प्रशासन को करनी होगी। या प्रशासन secl प्रबंधन के माध्यम से भी इनके लिए रोजगार की व्यवस्था करवा सकता है। और जरुरी नहीं स्कूलों में ही करें। Secl प्रबंधन के कारण रोजगार गया हैं तो जिलाधीश महोदय secl प्रबंधन को बहादुर चौहान के रोजगार की व्यवस्था करने के लिए पत्राचार कर ही सकते हैं। वैसे भी secl के अंडर में कई ठेका कम्पनियां हैं। उनमे से किसी में इनके लिए व्यवस्था की जा सकती हैं। वैसे भी इनका रोजगार अंशकालीन था। मगर फिर भी 12 वर्षों से तो आखिरकार कार्यरत थे ही। तो अगर जिलाधीश महोदय चाह लें तो बिल्कुल इनके लिए कुछ ना कुछ व्यवस्था तो हो ही सकती हैं। जन प्रतिनिधि होने के नाते पीड़ित की आवाज सही स्थान तक पहुंचाना हमारा काम है। अब संबंधित विभाग इस पर क्या संज्ञान लेता हैं यह उनके मानवता वाली नजरिया पर निर्भर करता हैं।

वैसे एक नजर में तो जिलाधीश महोदय केस को देखते ही नकार दिए थे की सफाई कर्मी का जॉब था तब कुछ नहीं हो सकता पर उनके संज्ञान में यह बात लाई गई हैं की बहादुर चौहान 70 प्रतिशत विकलांगता के शिकार हैं। इसलिए मानवता की नजर से केस को स्पेशल अटेंशन देकर इस पर पुनः विचार करना होगा। इस पर जिलाधीश महोदय कोई कमेंट तो नहीं किए मगर देखता हुँ जरूर बोले हैं। लेकिन अगर सचमुच वह देख लेंगे तो इसका प्रभाव बहादुर चौहान की जिंदगी पर बड़ा ही सकारात्मक पड़ेगा। क्योंकि एक तो दिव्यांग ऊपर से कुदरत नें उनके जीवन यापन की जो व्यवस्था की थी उसे भी secl अधिग्रहण प्रक्रिया नें छीन लिया अब इनके बारे में सोचना हम सामाजिक प्राणी का काम हैं क्योकी ऐसे हालात में पीड़ित का तो और ही मन अशांत हो जाता हैं उन्हें सूझता ही नहीं की क्या किया जाये। तो सामाजिक प्राणी होने के नाते यह हमारा और आप सभी का दायित्व बनता हैं की मानवता के नाते ऐसे लोगों के कल्याण के बारे में सोचें।
बहादुर चौहान के साथ न्याय कैसे किया जा सकता है।
चुंकि वह आदिम जाती प्राथमिक शाला में सफाई कर्मी के तौर पर अंशकालीन रूप से पदस्थ थे तो पहली प्राथमिकता तो यही रहेगी की उन्हें किसी आदिम जाती प्राथमिक शाला में सफाई कर्मी के रूप में पदस्थ किया जाये। दूसरा विकल्प यह भी है की जिलाधीश महोदय SECL के माध्यम से उनका कल्याण करवाएं क्योंकि आखिरकार उनका जन जीवन SECL द्वारा किए जा रहे भू अधिग्रहण प्रक्रिया से प्रभावित हुआ है। तो रोजगार प्रभावित होने के एवज में SECL मुआवजा देकर उसकी भरपाई करे या फिर किसी ठेका कंपनी में उन्हें सफाई कर्मी का पद देकर उनका कल्याण करे
Uday Kumar serves as the Editor of Nawa Chhattisgarh, a Hindi-language news outlet. He is credited as the author of articles covering local, regional, and national developments.

