कल सुबह ज़ब दीपका थाना प्रभारी से मेरी मुलाक़ात हुई तब मैं उन्हें घर पर घटित घटना के संदर्भ में लिखित शिकायत दिया था। तब तक तो दीपका टी आई महोदय का व्यवहार बड़ा ही सकारात्मक था। वह बड़ी अच्छी अच्छी बातें कर रहे थे। और मेरे व परिवार द्वारा कहे गए सारी बातों का बड़े ही शालीनता के साथ respond कर रहे थे। केस में को-ऑपरेट कर रहे थे।
बातों ही बातों में मैंने उनसे तीन वर्ष पूर्व दीपका थाना परिसर में मेरे साथ जो अप्रिय वारदात हुआ था उसका जिक्र करते हुवे उन्हें यह जानकारी दे दिया कि पिछली मर्तबा ज़ब अनिल पटेल नामक टी आई दीपका थाने में पदस्थ थे तब वह विपक्ष से 90,000 की रिश्वत खाकर मुझ पर 9 संगीन धाराएं थोपकर इसी केबिन से मुझे सीधा जेल भेजवा दिए थे।
यह जानकारी मुझे जेल से निकलने उपरांत गुप्त सूत्रों से मिली थी। की कौन कौन षड़यंत्र करके मुझे किस तरह जेल भेजे थे।
वह भी बिना किसी अपराध के जिस केस को कोर्ट में लड़कर जितने में और खुद को पाक साफ साबित करने में मुझे तकरीबन तीन वर्ष लग गए और अंततः मैं कोर्ट केस जिता और बाइज्जत बरी हुआ इसका मतलब थाना प्रभारी सचमुच फर्जी केस थोपे थे।
मगर मेरे द्वारा बताई गई इन बातों में टी आई महोदय को एक अवसर भी नजर आने लगा की विपक्ष उदय चौधरी को फ़साने के लिए रकम ढीली भी करता है। मुझे यह अंदेशा नहीं था की इस बार पुनः इस तरह की घटना थाना परिसर में घटित सकती है। क्योंकि बात विचार से थाना प्रभारी मुझे सज्जन व्यक्ति लगे थे।
पुनः विपक्ष दीपका थाने के भाजपा समर्पित उसी पुलिस कर्मी को निमित्त बनाकर थाने में मेरे लिए फिर से जाल बिछवा दिए। और मुझ पर फर्जी आरोप थोपकर जेल भेजने का षड़यंत्र रच दिया गया। अब बस इंतज़ार किया जा रहा था की कब उदय चौधरी थाने पहुंचे और उससे अनर्गल बातें करके उसे उकसाया जाये और आवेश में आकर अगर वह कोई बात किया तो सीधा जेल भेजा जाये।
विपक्ष ज़ब थाने से बाहर निकल रहा था तब वह जिस अंदाज में मुस्कुरा था उससे यह भाम्पने में देर नहीं लगा की अब तो सांठ गांठ करके दाल में कुछ काला किया जा चूका है। मगर मैं खुद संघर्ष करना चाहता हुँ। ताकि ऐसे ऐसे हालातों से अकेले निपटू तो आत्म बल बढे और वही आत्म बल मैं सामाजिक कार्यों में लगा सकूं। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। आत्मबल पाने के लिए इस तरह के situation को अकेले हैंडल करना पड़ता है।

इसलिए मैंने किसी का साथ नहीं लिया वरना यह बात तो मुझे भली भांति पता है की थाने में आजकल बिना नेतागिरी के रिपोर्ट नहीं लिखा जाता। ज़ब तक आप चार आदमी साथ नहीं रखेंगे तब तक आपकी बात नहीं सुनी जाएगी अगर आप अकेले जायेंगे तो पुलिस आपके ही खिलाफ कार्यवाही करेगी। इन बातों का अच्छा खासा अनुभव है। क्योंकि दीपका थाने में मेरे खिलाफ एक नहीं दो मर्तबा फर्जी एफ आई आर थोपे गए जिसे कोर्ट में लड़ा और लड़कर जीता हुँ। और कुल 6 वर्ष कोर्ट कचहरी में ही बीते हैं।
मगर मुझे आत्मबल कमाने के लिए अकेले संघर्ष करना अच्छा लगता है फिर उसके लिए इस तरह से जीवन दांव में लगाने में मैं नहीं घबराता क्योंकि मैं सहीं हुँ तो दुनियां की कोई भी ताकत मुझे हरा नहीं सकती।
ज़ब मैं अपनी पत्नी व दो नन्हे बच्चों के साथ शाम को दीपका थाने में थाना प्रभारी के केबिन में गया तब टी आई महोदय जो सुबह तक मुझसे व मेरे परिवार के सदस्यों से बड़े ही सकारात्मक व्यवहार कर रहे थे। अचानक से उनका रवैया बदल गया और वह बड़े ही नकारात्मक तरिके से मेरे साथ व मेरी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करने लगे।
मुझे उकसाने के लिए उन्होंने पूछा कि तुम अपनी पत्नी को कहां से विवाह करके लाये हो और उन्होंने कहा की मेरे सामने यह पत्रकारिता का धौंस ना दिखाओ सब निकाल दूंगा। और बिना जाँच किये मेरी पत्नी द्वारा कहे जा रहे शिकायत को उन्होंने झूठा करार देते हुवे यह बोले की तुम्हारी पत्नी झूठ बोल रही है। फिर बोले तुम भी कुछ किये होंगे तब तो विपक्ष हमला किया और इसलिए मैं तुम पर अब धारा 151 लगाऊंगा
जिनके माध्यम से विपक्ष सेटिंग किये थे वह पुलिस कर्मचारी भी वहाँ मौजूद थे। अक्सर वह मुझे देखकर मुंह फेर लिया करते थे क्योंकि मैं जो सत्य बातें सोशल मीडिया पर लिखता रहता हुँ। उन बातों से महोदय बहुत ज्यादा चिढे हुवे से रहते हैं। जो पुलिस कर्मी मुझसे कभी सीधे मुंह बात तक नहीं किये अचानक वह मीठा बोलते हुवे मेरा नाम लेकर मुझसे मेरा हाल पूछने लगे और कहने लगे की और उदय चौधरी कैसा है तू।
यह वही पुलिस कर्मी थे जिन्होंने 6 महीने पहले एक नेता व पत्रकार के कहने पर मुझे थाने परिसर में यह कहे थे कि उदय चौधरी पर ऐसे ऐसे अपराध पंजीबद्ध करो कि इसकी सारी अकड़ टूट जाये। ज़ब की मैंने कोई अपराध नहीं किया था। उन्हें मेरे स्वाभिमान से बहुत ज्यादा तकलीफ थी यह बात तो हर मुलाक़ात में महसूस होती ही थी। मैं समझ गया इनके माध्यम से विपक्ष ने कुछ तो दाल में काला कर दिया है।
इधर टी आई के केबिन में पहुंचने उपरांत टी.आई. साहब पति पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करने लगे और हमसे कहने लगे कि मैं बहुत व्यस्त हुँ। तुम्हारी बातें सुनने का मेरे पास समय नहीं। सवाल यह उठता है कि ज़ब समय नहीं तो केबिन में क्यों बुलाया गया। केबिन में किसी को तब ही बुलाना चाहिए ज़ब बात करने का समय हो।
अगर केबिन में कोई बैठा है तो उन्हें समय तो देना पड़ेगा। मगर उन्होंने कहा कि तुमसे ज्यादा जरुरी मेरा यह काम है जो मैं कम्प्यूटर पर कर रहा हुँ। ज़ब कंप्यूटर में व्यस्त हैं तो हमें बाद में केबिन में बुलाते किसी को केबिन में बुलाकर यह कहना कि मैं व्यस्त हुँ यह बात उचित नहीं लगा।
और एक आरक्षक को बुलाकर कहने कि उदय चौधरी पर धारा 151 लगा दो। मैं सोच में पड़ गया कि किस अपराध के कारण मुझ पर धारा 151 लगाने कि बात टी आई महोदय क़ह रहे हैं।
तो उनका कहना है कि ज़ब तुम सामने वाले पर रिपोर्ट लिखवा सकते हो तो तुम भी तो कुछ किये होगे यह कहते हुवे टी.आई. महोदय आरक्षक को कहने लगे कि इस पर धारा 151 लगाओ और सामने वाले पर भी लगाओ और दोनों को जेल भेज़ दो।
मतलब सामने वाला किसी पुलिस कर्मी तक पैसे पहुंचा दिया यह बात तो समझ में आ गई थी तभी बिना किसी अपराध के धारा 151 लगाने कि बात दीपका थाने के टी आई महोदय मुझसे क़ह रहे थे।
थाने में टी आई के केबिन में बिल्कुल ऐसा माहौल बनाया गया जैसा आज से ठीक 3 वर्ष पहले बनाया गया था। और मेरी पत्नी व मेरे साथ दीपका थाना टी आई महोदय अनर्गल बातें कहने लगे। कहने लगे सारी पत्रकारिता घुसा दूंगा। ज़ब की मैंने एक शब्द भी अमर्यादित नहीं कहे। मैंने संविधान का कहीं भी उलंघन नहीं किया। वर्दी का धोन्स दिखाकर वह डराने धमकाने लगे।
मैं समझ गया कि पैसे पहुंच गए हैं क्योंकि मैं जो भी सच्ची व अच्छी बातें उनसे क़ह रहा था टी आई महोदय हर बात पर भड़क कर उल्टा जवाब दे रहे थे। अपने पद का दुरूपयोग करते हुवे वह अमर्यादित बातें कहने लगे जो एक टी आई को नहीं कहनी चाहिए।
भारतीय संविधान भारत के सभी राज्यों में बराबर रूप से लागु है। मेरी शादी बिहार से हुई है और अगर मेरी पत्नी के साथ अगर छत्तीसगढ़ में कोई घटना घटित होती है। तो मैं बिहार जाऊंगा या नजदीकी थाने में जाऊंगा मगर दीपका थाना प्रभारी ने मुझे यह जताने कि कोशिश कि की बिहारियों के लिए यह थाना नहीं बना है।
उसी बिच ज़ब थाना प्रभारी मुझ पर भड़ास nनिकाल रहे थे तब ही एक आरक्षक मुझे कहने लगे की तुम पत्रकार वाली माइक हाँथ में क्यों रखे हो इसे बैग के अंदर रखो और इस अंदाज में कहा गया जैसे मैं कोई हथियार रखकर टी.आई. के केबिन में घुसा होऊं
मैं समझ गया की दाल में कुछ काला है। फिर मैं दीपका थाने से अपनी पत्नी के साथ सीधा कोरबा महिला थाने गया। वहाँ पाया की sunday होने की वज़ह से कोरबा महिला थाने शाम को बंद हो चूका था। तब मैं एस पी ऑफिस गया मैंने पाया की एस पी कार्यालय भी बंद हो चूका था। तब मैं बगल में ही एडिशनल एस पी ऑफिस गया वहाँ पता चला की वैसे तो sunday है। सर अब नहीं आते मगर अभी 10 मिनट के लिए कुछ काम से आने वाले हैं।
हम कुछ देर इंतज़ार किये additional sp साहब के आते ही वह कुछ कर्मचारियों के साथ एक मीटिंग लिए। उसके बाद हम उनसे मिलकर लिखित रूप से सारी व्यथा बतलाकर शिकायत किये। उन्होंने धीरज के साथ सारी बात सुने। उसके बाद बोले की अभी तो sunday है। रिसिविंग नहीं मिल सकती कल आकर रिसीविंग लें सकते हो। वह दीपका थाना प्रभारी को कॉल किये और मामले के संदर्भ में संज्ञान लेने को बोले फिर हमसे बोले की आप लोग दीपका थाना प्रभारी के पास ही जाइये वह अब आपकी कम्प्लेन लिखेंगे।
हम दीपका थाना प्रभारी के द्वारा किये गए दुर्व्यवहार से यह भाम्प चुके थे की वह विपक्ष से मिल चुके हैं। इसलिए बिना किसी अपराध के मुझ पर धारा 151 लगाने की धमकी दे रहे हैं। हम एडिशनल एस.पी. साहब से बोले की हम वहाँ नहीं जाना चाहते उनका रवैया थोड़ा संदिग्ध लग रहा है।
वहाँ मिलीभगत की बू आ रही थी इसलिए हम आपके समक्ष अपनी व्यथा बतलाने आये हैं। मगर एडिशनल एस पी साहब ने आश्वासन दिलाया की आप जाइये तो सही ऐसा कुछ नहीं होगा।
उतने में मैंने उनसे एक सवाल पूछा की सर किसी महिला के साथ कोई घटना घटित होती है। वह नजदीकी थाने जाती है अगर उसे यह महसूस होता है की संबंधित थाना प्रभारी विपक्ष के साथ मिल चूका है।
तो वह महिला थाने आती है महिला थाने बंद पायी तो एस पी कार्यालय आयी वहाँ भी बंद तो एडिशनल एस पी के पास आई अब अगर उच्च अधिकारी उस महिला को वापस उसी थाना प्रभारी के पास भेजते हैं तो क्या वह महिला अपने आप को सुरक्षित महसूस करेंगी तब एडिशनल एस पी साहब कहने लगे की अब आप argument कर रहे हैं। मैं शांत हो गया।
ज़ब उन्होंने आश्वासन दिया की आपको कुछ नहीं होगा मैं थाना प्रभारी को कॉल करके बोल दिया हुँ। वह आपके द्वारा दी गई शिकायत लिख लेंगे आप निश्चिंत होकर जाइये तब मैं अपनी पत्नी व दो नन्हे बच्चों को कोरबा से सीधा दीपका थाने आया। वहाँ थानेदार साहब की गाड़ी तो थी पर वह थाने में कहीं नजर नहीं आये।
दीपका थाने पहुंचने पर थाने के प्रत्येक पुलिस कर्मी मुझसे रुखा व्यवहार कर रहे थे जैसे की एडिशनल एस पी साहब के पास अपनी वेदना बताने जाने से मैंने कोई अपराध कर दिया हो ऐसा महसूस हुआ। कोई सीधे मुंह बात ही नहीं कर रहे थे। एक ने तो कहा की सिर्फ तुम्हारी पत्नी बयान देने आएगी तुम उसके साथ नहीं बैठोगे। फिर ना जाने क्यों कुछ देर पश्चात मुझे भी वहाँ बुलाया गया जहां मेरी पत्नी अपना बयान लिखवा रही थी। मैंने पाया की थाने में कोई महिला सिपाही नहीं थी और पुरुष पुलिस कर्मी ही सारा बयान लिखा रहा था। मुझे वहाँ बस इस शर्त पर बैठने दिया गया था की आप कुछ नहीं बोलोगे शांत रहोगे। जो कुछ बोलना है बस आपकी पत्नी बोलेगी। इस तरह के रूखे व्यवहार से मेरा हृदय बड़ा आहत हुआ मैं सोच में पड़ गया की थाने में आकर शिकायत दर्ज करवाना किसी अपराध की श्रेणी में आता है ऐसा महसूस हुआ।
ले देकर एफ आई आर दर्ज हुआ। एक संपादक को एफ आई आर दर्ज करवाने के लिए जान तक दांव में लगाना पड़ रहा है। बच्चों के सामने एक सरीफ आदमी से एक पत्नी के सामने सरीफ पति से थाना परिसर में हुवे दुर्व्यवहार से मेरा हृदय छल्ली छल्ली हो गया यह राम राज्य है या रावण राज्य है। आम जन मानस का क्या हाल होता होगा ज़ब वह पुलिस के समक्ष अपनी व्यथा सुनाने जाता होगा।
वैसे प्रत्येक थाने में महिला सिपाही होना चाहिए जिससे की महिलाएं सहजता के साथ आपबीती महिला सिपाही से शेयर कर सकें। पुलिस द्वारा किये गए भ्रष्टाचार के खिलाफ भी उच्च अधिकारी को शक्त कार्यवाही करना चाहिए। क़ानून सबके लिए बराबर है तो पुलिस के कर्मचारी अधिकारी भी उसी भारतीय संविधान के अंतर्गत आते हैं। अगर वह संविधान का उलंघन करते हैं। तो उन पर भी कार्यवाही होनी चाहिए।
उदय चौधरी
नवा छत्तीसगढ़ न्यूज़
संपादक
Uday Kumar serves as the Editor of Nawa Chhattisgarh, a Hindi-language news outlet. He is credited as the author of articles covering local, regional, and national developments.

