
गेवरा दीपका – गेवरा-दीपका कोयलांचल क्षेत्र जो की एशिया का नंबर वन कोल् माइंस इलाका है। आज इस क्षेत्र में अगर सबसे बड़ी कोई समस्या है तो वह है यहाँ के भू-विस्थापितों की समस्या। जो समस्या वर्तमान में कैंसर का रूप धारण कर चुकी है।
Secl प्रबंधन खदान विस्तार के लिए मूलनिवासीयों की जमीने अर्जित करता गया और बदले में मुआवजा, रोजगार एवं पुनरवास के नाम पर भू स्वामियों को भू विस्थापितों को झुनझुना थमाता गया। ज़ब ज़ब बगावत हुई तब तब पीड़ितों की आवाज को दबाने के लिए SECL प्रबंधन ने साम दाम दंड भेद सब लगा दिए। संगठित ना होने की वज़ह से राजनैतिक षड्यंत्र रच रचकर भू विस्थापितों को उनके हक अधिकार से वंचित किया गया।
अब भू विस्थापितों को संगठित किया जा रहा है जिसके लिए छत्तीसगढ़ मूलनिवासी भू विस्थापित सेना का गठन किया गया। जिसमे छत्तीसगढ़ प्रान्त के मूलनिवासी जिनकी जमीने उद्योगों ने अर्जित करके उनके साथ छल किया उनको उनके अधिकार से वंचित किया ऐसे पीड़ितों की आवाज उठाने के लिए जमीनी लड़ाई लड़ने के लिए साथ ही अधिकारिक स्तर पर भी संघर्ष के लिए साथ ही कोर्ट कचहरी स्तर पर भी संघर्ष करने के लिए उक्त संगठन का गठन किया गया है।
बीते चार दशकों में एक से बढ़कर एक जन प्रतिनिधि जनता से वोट लेकर तरह तरह के वायदे करके कुर्सी पर काबिज हुवे। मगर भू विस्थापितों की समस्या का समाधान निकालने की जगह खुद की तिजोरी भरकर साइड होते गए। जिस वज़ह से भू विस्थापितों की समस्या आज ज्यों की त्यों बनी हुई है।
आम जन मानस हक अधिकार पाना तो चाहता है पर कैसे पाए यह लोगो के बिच मुख्य मुद्दा आकर फंस जाता है। सामने पहाड़ समान SECL से जूझकर अपना हक अधिकार पाना कोई मामूली बात नहीं। उसके बाद आंदोलन करना वह भी बिना बैनर के तो वह भी अकेले के बस की बात नहीं और तो और हर कोई कोर्ट कचहरी के चक्कर काट सके इतने पैसे भी सबके पास नहीं।
उधर SECL खुद के फेवर में व भू विस्थापितों को हक अधिकार से वंचित रखने के लिए एक से बढ़कर एक नए नियम बनाकर पीड़ितों को और भी ज्यादा पीड़ित बनाने का षड़यंत्र रचता रहता है।
हाँ मगर यह कार्य असम्भव भी नहीं. बसर्ते अगर नेतृत्व कर्ता अपना ईमान ना बेचे तो यह सम्भव है की भू विस्थापित अपना अधिकार पा लेंगे।
भू विस्थापितों का वोट महज यह कहकर बटोर लिया जाता है। की चुनाव जितने उपरांत हम आपकी समस्या सुलझा देंगे और समस्या सुलझ जाने की उम्मीद से मूल निवासी अपना कीमती वोट ऐसे वादे करने वाले लोगो को देते आये।
मगर वोट पाकर चुनाव जितने उपरांत भू-विस्थापितों को भूलकर जन प्रतिनिधि अपनी ही जेब भरने में व्यस्त हो जाते हैं। और भू विस्थापितों का मुद्दा ठन्डे बस्ते में चला जाता है। ग्रामीण शासन प्रशासन से व स्थानीय जन प्रतिनिधियों से मदद की गुहार लगाने यहाँ वहाँ भटकते रहते हैं।
Secl मूलनिवासीयों की जमीने लेने उपरांत उन्हें रोजगार, पुनरवास, मुआवजा के लिए दर बदर की ठोकरे खाने के लिए छोड़ देता है। इस बिच जो राजनैतिक पार्टियों के नुमाइंदे होते हैं जो फर्जी दस्तावेज के आधार पर मूलनिवासी बनकर SECL से मुआवजा उठा लेते हैं नौकरी भी पा लेते हैं। मगर जो वास्तविक भू विस्थापित हैं वह अपने हक अधिकार से वंचित हो जाते हैं।
SECL सत्ताधारीयों के गियर में काम करता हुआ उनके नुमाइंदो के लिए तो जुगाड़ बना देता है मगर इस चक्कर में वास्तविक मूलनिवासीयों का हक अधिकार प्रभावित होता है। मूलनिवासी संगठित नहीं होने के कारण इसका फायदा बाहरी लोग राजनैतिक पार्टियों के पीछे छिपकर उठाते हैं।
एशिया के नंबर वन कोयलांचल क्षेत्र में आज सबसे ज्यादा अगर किसी चीज की जरूरत है तो सच्चे नेता की सच्चे पत्रकार की जरूरत है जो यहाँ के मूलनिवासीयों के हक अधिकार की आवाज अच्छे से उठा सके। मगर देखने में आता है की राष्ट्रीय स्तर के अख़बार व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी सरकार व SECL के पक्ष में और जनता के विपक्ष में खडे हो जाते हैं और ज़ब समाज के दो स्तम्भ पत्रकार व जन प्रतिनिधि बिक जाएं झुक जाएं या लें देकर शांत हो जाएं पीछे हट जाएं तो जिनके बलबूते समाज खड़ा है ज़ब वह लड़खड़ाएंगे तो समाज तो गिरेगा ही इसका खामियाजा समाज पर नजर तो आएगा ही यही हाल यहाँ हो रहा है जन प्रतिनिधि व पत्रकार अपनी जेबें भरने में व्यस्त हैं।
इधर भू विस्थापित अपने हक अधिकार के लिए रो रो कर थक चूका है उनकी आँखों के आँशु तक सुख चुके हैं मगर मजाल है किसी पत्रकार की किसी जन प्रतिनिधि की जो SECL या सत्ता धारी से सवाल कर सकें या फिर उनसे लड़कर भू विस्थापितों को उनका हक अधिकार दिलवा सके इस कमी को देखते हुवे एशिया के नंबर वन कोय लांचल क्षेत्र में भी विस्थापितों के हक अधिकार की लड़ाई लड़ने के लिए छत्तीसगढ़ मूलनिवासी भू विस्थापित सेना का गठन किया गया
जिसके अध्यक्ष राजेश जायसवाल जी को मनोनीत किया गया वही सितदास महंत जी एवं रन सिंह चौहान को उपाध्यक्ष के पद पर मनोनीत किया गया। संरक्षक शिव पूजन गुप्ता, एवं कार्यकारिणी सदस्य के रूप में सुरेंद्र गुप्ता, नितेश सिंह, अनुपम कुमार गोविंदा वहीं मीडिया प्रभारी उदय केंवट को मनोनीत किया गया
Uday Kumar serves as the Editor of Nawa Chhattisgarh, a Hindi-language news outlet. He is credited as the author of articles covering local, regional, and national developments.

